आधुनिक हिन्दी कविता में सामाजिक चेतना: नागार्जुन और धूमिल के सन्दर्भ में
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https://doi.org/10.56614/4yxy9x90Abstract
बीसवीं शताब्दी का उत्तरार्ध हिन्दी कविता के लिए एक संक्रमण काल रहा है, जिसमें कविताओं ने सौंदर्यबोध से हटकर सामाजिक यथार्थ को केंद्र में रखा। इस काल में कविता ने जन-सरोकारों को अपनाया और आम जनता की आवाज़ बनने का प्रयास किया। इस परिवर्तन की धारा में नागार्जुन और धूमिल जैसे कवियों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही। इन कवियों ने शब्दों को हथियार बनाकर सत्ता, अन्याय, विषमता और शोषण के विरुद्ध कविताएँ लिखीं। उनकी कविताओं ने पाठकों को झकझोरा और कवि को सामाजिक उत्तरदायित्व की भूमि पर स्थापित किया।
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Copyright (c) 2024 हिन्द खोज: अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका (HIND KHOJ: Antarrashtriya Hindi Patrika), ISSN: 3048-9873

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